एक ख़त


एक ख़त हमने लिखा ख़ुद को, पढ़ा हमारे हमज़ाद नें।
कहा “कौन है तू, तेरा नाम है क्या?”, ताउम्र ख़ुद को ही ना जाना बद-ज़ात नें।
 
हमज़ाद: Alter ego
बद-ज़ात: Rascal

इश्क़--जदीद


इश्क़-ऐ-जदीद का है खेल अजब, शख्सियतें मुनहसिर हैं फ़क़त अल्फ़ाज़ों पर।
 
इश्क़-ऐ-जदीद: Love of modern era
शख्सियतें: Personal character
मुनहसिर: Dependent

अज़ाब-ए-दहर


इंसानों से सियासतें की, सियासतों से दिल लगा बैठे।
अज़ाब-ए-दहर में हम, कहर-मानो से उम्मीद लगा बैठे।
 
अज़ाब-ए-दहर: Punishment of world
कहार-मानो: Tyrants

सवालात


जो सावाल हैं ज़हन में, कहीं वो सवाल-ए-मख़्लूक़ तो नहीं?
जो सफर तय किया है इन जवाबों के लिए, वही जवाब-ए-वजूद तो नहीं?
जो गर यहीं तक था मसला सवालों का, तो कहीं ये शब-ए-आख़िरत तो नहीं?
जो गर बची है जिंदगी अब तो आखिर क्यों? यही सवाल-ए-आख़िरत तो नहीं?
 
सवाल-ए-मख़्लूक़: Questions of creatures जवाब-ए-वजूद: Answers of existence
शब: Night आख़िरत: The end

कौन हूं मैं ?


नशे में सराबोर हूं मैं, या खुदा, ये कौन हूं मैं?
क्या अंजुमन, क्या महफिलें, इन ख्यालों से ग़ाफ़िल हूं मैं या खुदा, ये कौन हूं मैं?
दुनियाई हुलिया रिंद ही सही, ज़हनी तौर से वाइज़ हूं मैं, या खुदा, ये कौन हूं मैं?
क्या महज़ ख़ुद-परस्त हूं मैं, या खुदा, ये कौन हूं मैं?
 
सराबोर: drenched अंजुमन: society
ग़ाफ़िल: neglectful
रिंद: Drunkard वाइज़: Preacher
महज़: mere ख़ुद-परस्त: Narcissist
 
 
 

 
©Rameez Qureshi
 
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